कृषि-वानिकी पद्धतियों का वर्गीकरण
सूची
किंग (1979) के अनुसार कृषि वानिकी की चार बुनियादी पद्धतियाँ हैं:
- कृषि वानिकीय (Agro-Silvi culture)
- वन- चारागाही (Silvo-Pastoral)
- कृषि वानिकीय चारागाही (Agro-Silvo-Pastoral)
- बहुउद्देशीय वानकीय वृक्ष उत्पादन (Multipurpose Forestree Production)
नायर (1985)
नायर द्वारा कृषि वानिकी पद्धतियों का विस्तृत रूप में वर्गीकरण किया गया है। इन्होनें कृषि वानिकी के अन्तर्गत मत्स्यकी (Fish Production) मधुमक्खी पालन को भी कृषि वानिकी पद्धति के अन्तर्गत माना है। बुनियादी रूप में नायर (1985) ने भी धार कृषि वानिकी पद्धतियाँ मानी है
- कृषि वानिकीय,
- वानिकीय- चारागाही
- कृषि वानिकीय चारागाही तथा
- अन्य पद्धतियाँ।
इन चार प्रमुख पद्धत्तियों को उप-पद्धतियों में विभाजित किया गया है। टोंग्या पद्धति, स्थानातकारी कृषि, एलेकॉपिंग को भी एक पद्धति माना गया है।
अगर वानिकी नहीं पढ़ा तो पहले वानिकी को पढ़े
पद्धतियाँ –
- कृषि वानिकीय घटक वृक्ष फसले, झाडियाँ
- वानिकीय चारागाहीघटक वृक्ष, चारागाह एवं पशु
- कृषि-वानकीय- चारागाही घटक वृक्ष, फसले, चारागाह / पशु
- अन्य पद्धतियां घटक – बहुउद्देशीय वृक्षों का समूह, मधुमक्खियाँ, मछली, रेशम कीट
कृषि वानिकी के अन्तर्गत लगाये जाने वाले उपयोगी वृक्ष (Useful trees for Agro-forestry)
- पशुओं के लिए चारा (Fodder for Cattels) सुबबूल, इमली, पीपल (Pepal), कचनार (Bauhinia) तथा जंगली बेर आदि।
- जलाने के लिए ईंधन (Fuel) सिरस, नीम (Neem), पलास, झाऊ, इमली तथा बेर आदि।
- इमारती लकड़ी के लिए वृक्ष (Timber for building) शीशम (Shisham), सागौन (Teak), झाऊ देशीबाँस आदि।
- जंगली फल व फूलों वाले वृक्ष (Wild fruit flower trees) आँवला, कटहल, शहतूत, जामुन, कैथ, खिन्नी, बेल वाले वृक्ष लगाये जाते है।
सामाजिक वानिकी
सामाजिक वानिकी
- सामाजिक वानिकी पौध रोपण की एक ऐसी पद्धति है जो परम्परागत वनों या स्थापित वनों के अलावा लोगों व सरकारों को निजी अथवा सार्वजनिक भूमि पर पेड़ उगाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
- इसका प्रमुख उद्देश्य परंपरागत वनों पर दबाव कम करके अनुपयोगी भूमि या परती भूमि का उपयोग करते हुए ग्रामीण रोजगार के अवसर पैदा करना है।
- सामाजिक वानिकी के तहत सार्वजनिक व निजी भूमि पर वृक्षारोपण’ को प्रोत्साहित किया जाता है। इस हेतु प्रथम सुझाव 1976 में राष्ट्रीय कृषि आयोग द्वारा दिया गया था।
- इस कार्यक्रम की शुरूवात 1978 में हुई और 1980 में यह छठी पंचवर्षीय योजना का अंग बन गया।
- सामाजिक वानिकी परियोजना का शुभारंभ सन् 1980-81 में 6वीं पंचवर्षीय योजना के > सामाजिक वानिकी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग जैक वेस्टॉवी 1988 में दिल्ली में आयोजित अंतर्गत किया गया।
- 9वीं कॉमनवेल्थ फॉरेस्ट्री कॉन्फ्रेंस में किया गया।
- सामाजिक वानिकी को भारत में सर्वप्रथम गुजरात राज्य में शुरूआत किया गया।
- वन महोत्सव लोगों के बीच वृक्ष चेतना पैदा करने के लिए एवं पर्याप्त उत्साह उत्पन्न करने को
- वृक्षारोपण का संयोजित आयोजन वन महोत्सव 1950 में के. एम. मुंशी द्वारा शुरुवात की गई ।
सामाजिक वानिकी के घटक
1. प्रक्षेत्र वानिकी (Form Forestry)
2. विस्तार वानिकी ( Extension Forestry)
3. मिश्रित वानिकी (Mixed Forestry)
4. मनोरंजक वानिकी (Recreation Forestry)
राष्ट्रीय कृषि आयोग (NCA) के अनुसार सामाजिक वानिकी के तीन प्रकार
1. ग्रामीण वानिकी (Rural Forestry)
ग्रामीण क्षेत्रों की स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शासकीय या अशासकीय भूमि पर वृक्षारोपण करना ग्रामीण वानिकी कहलाता है।
2. शहरी वानिकी (Urban Forestry)
शहरी वानिकी शहरी क्षेत्र में पर्यावरण सुधार तथा भू-सौंदर्यीकरण के लिए किया जाना वृक्षारोपण शहरी वानिकी कहलाता है।
3. प्रक्षेत्र वानिकी (Form Forestry)
प्रक्षेत्र वानिकी इसकी शुरूआत सन् 1970 में की गई। किसी निश्चित भूमि विशेषकर कृषि भूमि पर ईंधन, काष्ठ, पशु चारा तथा फल प्राप्त करने के उद्देश्य से सघन वृक्षारोपण करना प्रक्षेत्र वानिकी कहलाता है। इसे वन कृषि या वृक्षों की खेती भी कहते हैं।
राष्ट्रीय वन नीति के अन्तर्गत परिवर्तन
1. स्वतंत्रता के पूर्व 1830 में राष्ट्रीय वन नीति के अंतर्गत वन या वृक्षारोपण या उनकी सुरक्षा सम्बन्धित नीति का निर्धारण किया गया इस नीति के अन्तर्गत निम्नलिखित 4 प्रकार के वनों का दर्जा दिया गया है
- जलवायु की दृष्टि से सुरक्षित वन
- बहुमूल्य इमारती लकड़ी प्रदान करने वाले वन
- छोटे वन
- चारागाह ।
2. राष्ट्रीय वन नीति 1988 में देश के 1/3 भाग भाग में वनीकरण का लक्ष्य रखा गया इस वन नीति के अनुसार वन को 4 भागों में बांटा गया |
- सुरक्षित वन
- राष्ट्रीय वन
- ग्रामीण वन
- वृक्ष भूमि
राष्ट्रीय वन नीति के अंतर्गत “वन महोत्सव कार्यक्रम का शुरूआत किया गया। जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षण संस्थाओं, राजकीय बंगलों में, ब्लॉक, पंचायत भूमि, व्यक्तिगत भूमि, राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे की भूमि, नहरों के किनारे, नदियों के कछारों आदि सभी प्रकार के उपलब्ध भूमि पर वृक्षारोपण किया जाता हैं
इसी प्रकार के जानकारियों के लिए हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन करें