बीज प्रौद्योगिकी (Seed Technology)

बीज प्रौद्योगिकी (Seed Technology)

बीज के अंकुरण के आवश्यक कारण

बीज में अंकुरण की क्षमता, नमी अंकुरण के लिए बीज में 40-60% से अधिक नमी, उचित तापमान तथा ऑक्सीजन सप्लाई

पादप वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक

आनुवांशिकी गुण, वायु आर्द्रता, ताप, प्रकाश, खनिज लवण

शुद्ध बीज के प्रकार

  1. नाभिकीय / प्रजनक बीज
  2. आधार बीज
  3. पंजीकृत बीज
  4. प्रमाणिक बींज

बीज उपचार

बोआई के पूर्व बीज के प्रसुप्त अवस्था को कृत्रिम रूप से तोड़ने हेतु बीजोपचार किया जाता है। बीजोपचार निम्नलिखित है

1. भौतिक उपचार –

  1. ताप उपचार बीजों को 40-50 0C ताप दिया जाता है।
  2. निम्न ताप उपचार 12 से 14 घंटे के लिए 2-8 C ताप पर भिगाना।
  3. बारी-बारी से भिगाकर व सुखाकर भी सुसुप्तावस्था तोड़ा जाता है।

2. रासायनिक उपचार

कार्बनिक एवं अकार्बनिक रसायन उपचार।

प्रमुख बीज निगम एवं एजेंसी

1. राष्ट्रीय बीज निगम इसे 1963 में पंजीकृत किया गया है इसके प्रमुख उद्देश्य भारत में बीज उद्योग को विकसित करना तथा विभिन्न फसलों का उत्पादन करना एवं सप्लाई करना।

2 राज्य बीज निगम इसका प्रमुख कार्य प्रमाणित बीज का उत्पादन एवं सप्लाई करना है।

3. राज्य बीज प्रमाणिकरण एजेंसी राज्य बीज प्रमाणिकरण संस्था का उत्तरदायित्व बीज को प्रमाणित करना है बीज के प्रमाणिकृत करने के पूर्व इस संस्था के द्वारा खेतों का निरीक्षण एवं आवश्यक बीज परीक्षण किया जाता है।

4. भारतीय बीज अधिनियम शुद्ध और अच्छे बीज ही बाजार में बेचे जाये तथा उसकी गुणवत्ता बनी रहे इसके लिए भारत सरकार ने 1966 में इस अधिनियम को स्वीकृत किया जो अक्टूबर 1969 में लागू हुआ।

शरीर किया विज्ञान और कृषि विज्ञान

पादप जल संबंध पौधे के शरीर में जल मृदा से मूल तंत्र के माध्यम से प्रवेश करता है। पौधे के शरीर के अन्दर पहुंचने के पश्चात् विभिन्न कोशिकाओं एवं ऊतकों के द्वारा इसे अन्य भागों तक पहुंचाया जाता है।

पौधे जल को अपने बाह्य वातावरण से अवशोषित करते हैं और कुछ को उपयोग करके शेष जल को बाहर निकाल देते है। इस दौरान पौधे में कई प्रकार की भौतिक और जैविक कियायें जैसे जल अवशोषण, जल स्थानांतरण, विसरण, परासरण, अंतशोषण, वाष्पोत्सर्जन आदि होती रहती है।

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इन क्रियाओं के माध्यम से पादप और जल में एक सम्बन्ध स्थापित होता है। जिसे पादप जल संबंध कहतें है।

1. विसरण (Diffusion) –

पदार्थों का विसरण ठोस तथा द्रवों की अपेक्षा गैसीय अवस्था में अधिक होता है। उदाहरण – एककोशिकीय जीवों जैसे अमीबा (Amoeba), पैरामिशियम (Paramoecium), युग्लीना (Euglena) तथा कुछ बहुकोशिकीय जीवों जैसे -हाइड्रा (Hydra) में पदार्थों का संवहन मुख्यतः विसरण द्वारा होता है।

विसरण किया को प्रभावित करने वाले कारक – विसरण किया निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है

(i) विसरण प्रवणता की दिशा पर विसरण प्रवणता अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर होता है।

(ii) विसरण सतह के क्षेत्रफल पर – जितना क्षेत्रफल अधिक होता है, विसरण भी उतना ही अधिक होता है। इसलिए सामान्यतः पत्तियों का क्षेत्रफल अधिक होता है।

2. परासरण (Osmosis) –

“परासरण वह किया है, जिसमें जल या दूसरे विलायकों के अणु अर्द्धपारगम्य झिल्ली की उपस्थिति में अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर विसरण करते हैं।”
जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा खनिज लवणों का स्थानान्तरण परासरण के द्वारा ही होता है।

3. रसारोहण (Ascent of sap) –

“जड़ की जाइलम वाहनियों द्वारा अवशोषित जल एवं खनिज लवण का गुरुत्वाकर्षण के विपरीत पौधे के प्रत्येक भाग में ऊँचाई तक पहुँचने की प्रक्रिया को रसारोहण कहते है।”

4. वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)

पत्तियों में छिद्र पाए जाते हैं जिसे स्टोमेटा कहते हैं। स्टोमेटा द्वारा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है।

5. स्थानान्तरण (Translocation)

पौधों में घुलित पदार्थों का उसके एक भाग से दूसरे भाग तक पहुंचना ही स्थानान्तरण कहलाता है। पौधों में कार्बनिक भोज्य पदार्थों जैसे- सुकोज का स्थानान्तरण मुख्यतः फ्लोएम (Phloem) द्वारा होता है। जाइलम द्वारा परिवहन को संसजन बल तथा वाष्पोत्सर्जन खिंचाव द्वारा समझाया जाता है। इसके विपरीत फ्लोएम द्वारा स्थानांतरण ATP ऊर्जा के उपयोग द्वारा होता है।

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