छत्तीसगढ़ की मिट्टी

मिटटी रेत, क्ले, ह्यूम (वनस्पति अंश) एवं अन्य खनिजों से मिलकर अपना अस्तित्व बनाती हैं  इन तत्वों के अनुपात से मिट्टी की उत्पादकता एवं जलधारण क्षमता आदि का निर्धारण होता छत्तीसगढ़ में मुख्यतः 5 प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं

लाल-पीली मिट्टी ( मटासी मिट्टी )-

छत्तीसगढ़ में इसे मटासी मिट्टी कहते हैं. यह मिट्टी गोण्डवाना क्रम के चट्टानों क अवशेष से निर्मित है. यह मिट्टी कम उपजाऊ होती हैं. इसमें बालू की मात्रा क अधिकता के कारण जलधारण क्षमता कम होती है.

मटासी (लाल-पीली ) मिट्टी का प्रदेश के लगभग 50% – 60% भाग में विस्तार है. कोरिया सरगुजा, जशपुर, रायगढ़, जाँजगीर, कोरबा, कवर्धा, दुर्ग, बिलासपुर गौरेला – पेण्ड्रा – मरवाही, मुंगेली, रायपुर, धमतरी, तथा महासमुंद आदि जिलों में इसकी प्रधानता है.

यह मिट्टी धान, अलसी, तिल, ज्वार, मक्का एवं कोदो-कुटकी के लिए उपयुक्त होती है. चूना-प्रधान मिट्टी धान की फसल के लिए उपयुक्त होती है.

लाल रेतीली मिट्टी (टिकरा मिटटी)-

छत्तीसगढ़ में इसे टिकरा मिट्टी कहते हैं. इसमें लोहे का अंश अधिक होता है जिससे इस मिट्टी का रंग लाल होता है. यह मिट्टी ग्रेनाइट और नीस के अवक्षरण से बनी हैं. पोटाश एवं ह्यूमस की मात्रा की कमी तथा बालू, कंकड़ आदि की अधिकत के कारण यह मिट्टी कम उपजाऊ है. इस मिट्टी में नमी धारण की क्षमता का अभाव रहता है.

इसका विस्तार प्रदेश के लगभग 20% भाग में है. प्रधानतः बस्तर, दन्तेवाड़ा, कांकेर, राजनांदगाँव, रायपुर, दुर्ग, धमतरी आदि जिलों में इस मिट्टी का जमाव पाया जाता है.

यह मिट्टी अधिक उपजाऊ नहीं होती है तथा मोटे अनाज, आलू, तिलहन एवं कोदो-कुटकी हेतु उपयुक्त होती है. यह मिट्टी मोटे अनाजों के लिए उपयुक्त होती है. वृक्षारोपण हेतु यह मिट्टी उत्तम होती है,

लेटेराईट मिट्टी (भाटा मिटटी)

छत्तीसगढ़ में स्थानीय भाषा में ‘भाटा मिट्टी’ कहा जाता है. इसमें रेतीली मिट्टी, कंकड़, पत्थर आदि होते हैं. इसमें पोषक तत्वों की कमी रहती है साथ ही मिट्टी में रेत एवं कंकड़ की मात्रा अधिक होने के कारण कम उपजाऊ होती है. कठोरता एवं कम आर्द्रताग्राही होने के कारण भवन निर्माण एवं कृषि से भिन्न कार्यों के लिए यह मिट्टी उत्तम है.

यह मिट्टी सरगुजा (अंबिकापुर, सीतापुर), बलरामपुर (सामरी), जशपुर (बगीचा), बेमेतरा (साजा), बलौदाबाजार (भाटापारा) राजनांदगाँव (छुईखदान), कवर्धा तहसील, बस्तर (जगदलपुर) में मिलती है.

काली मिट्टी (कन्हार मिट्टी)-

छत्तीसगढ़ में इसे कन्हार मिट्टी भी कहा जाता है. उच्च भूमि में प्राप्त होने वाली काली मिट्टी “भर्री” कहलाती है. बेसाल्ट चट्टानों के अपरदन से काली मिट्टी का निर्माण होता है. फेरिक टाइटेनियम एवं मृत्तिका के सम्मिश्रण के कारण इसका रंग काला होता है.

इस मिट्टी की जलधारण क्षमता अच्छी होती है पर जल के अभाव से गर्मी के दिनों में यह मिट्टी चटक जाती है. अधिक आर्द्रताग्राही होने के कारण यह मिट्टी कृषि हेतु उत्तम मानी जाती है परन्तु इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा जीवांश का अभाव पाया जाता है.

इसमें कपास, गेहूँ, चना, मूंगफली तथा सब्जियों की अच्छी उपज ली जा सकती है. गन्ना, इस मिट्टी का विस्तार प्रदेश के बालोद, बेमेतरा, मुंगेली, राजिम, महासमुंद, कुरूद, धमतरी एवं कवर्धा तहसीलों में पाया जाता है. रायगढ़ एवं जशपुर जिलों में भी छिटपुट स्थानों पर यह मिट्टी मिलती है.

लाल दोमट मिट्टी

 लौह तत्व की अधिकता के कारण इसका रंग लाल होता है. यह मिट्टी आर्कियन्स एवं ग्रेनाइट के अवक्षरण से बनी है. यह कम आर्द्रताग्राही होने के कारण जल के अभाव में कठोर हो जाती है अत: इस मिट्टी में कृषि हेतु अधिक जल की आवश्यकता होती है,

इस मिट्टी में खरीफ मौसम में धान की अच्छी खेती होती है, रबी के मौसम में सिंचाई की व्यवस्था कर इसमें मोटे अनाजों, तिलहन एवं दलहन की खेती की जा सकती है, प्रदेश के लगभग 10-15 प्रतिशत भाग में इस मिट्टी का विस्तार है. मुख्य रूप से प्रदेश के बस्तर, सुकमा, बीजापुर एवं दन्तेवाड़ा जिलों में यह मिट्टी पायी जाती है.

छत्तीसगढ़ की मिट्टी

उपरोक्त के अलावा कन्हार व लाल-पीली मिट्टी के मिश्रण से निर्मित डोरसा मिट्टी भी पाई जाती है.

प्रदेश में कछारी एवं वनीय मिट्टियाँ भी पायी जाती हैं.

कछारी मिट्टी सिल्ट युक्त रेतीली दोमट होती है, जो नदी घाटियों के समीप पायी जाती

है, इसे ‘जलोढ़ मिट्टी’ भी कहा जाता है. यह बहुत उपजाऊ होती है. वनीय मिट्टियाँ उच्च भूमि में पायी जाती है. इसमें वनस्पति एवं वृक्ष अच्छी तरह विकसित होते हैं.

छत्तीसगढ़ में कितने प्रकार की मिटटी होती हैं ? इस सवाल का जवाब लगभग आपको समझ आ गया होगा

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