दामाखेड़ा
सूची
बलौदाबाजार जिले में सिमगा के निकट यह कबीरपंथियों का तीर्थ है. यहाँ कबीर मठ की स्थापना कबीरपंथ के बारहवें वंश गुरू उग्रनाम साहब ने की थी. कबीर आश्रम एवं समाधि यहाँ का प्रमुख दर्शनीय स्थल है. श्री मुक्तामणि नाम साहब कबीर पंथ के प्रथम वंश गुरू कहलाए
गिरौदपुरी
बलौदाबाजार जिले में स्थित गुरूघासीदास का जन्म स्थल है. यह सतनामी समाज का प्रमुख तीर्थ स्थल है. गुरूघासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 को हुआ था। यहाँ कुतुबमीनार से ऊंचा जैतखाम बनाया गया है.
- गिरौदपुरी में गुरूघासीदास का निवास गुरू निवास कहलाता है.
- यहाँ गुरू की गद्दी स्थापित है.
- गिरौदपुरी के निकट पहाड़ी पर औरा-घौरा वृक्ष के नीचे गुरू घासीदास ने तपस्या की थी और ज्ञान प्राप्त किया था। यह स्थल तपोभूमि के नाम से जाना जाता है. तपोभूमि के पास छाता पहाड़ स्थित है जहाँ गुरू घासीदास ने समाधि लगाई थी.
- इसके निकट ही गुरू घासीदास की पत्नी सुफरा जी का मठ है जो अपने पुत्र अमरदास के वन में खो जाने के वियोग में समाधिस्थ हो गई थी।
चम्पारण्य
राजिम से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चंपारण्य, वल्लभ संप्रदाय के प्रणेता एवं अष्टछाप सम्प्रदाय के संस्थापक लक्ष्मण भट्ट के पुत्र वल्लभाचार्य की जन्म स्थली है. चम्पारण्य का नाम चम्पकेश्वर महादेव के नाम पर पड़ा था. यह पहले शैव तीर्थ और अब वैष्णव तीर्थ के रूप में विख्यात यह पुष्टिमार्ग के अनुयायियों की धर्मस्थली है. यहाँ वल्लभाचार्य को समर्पित उन के अनुयायियों द्वारा निर्मित मंदिर के अलावा एक प्राचीन शिवलिंग प्रसिद्ध है. इस स्थली की खोज का श्रेय गोस्वामी नरसिंह लाल महाराज, नथमल आचार्य, रायपुर के रायसाहब तथा कुछ वैष्णव भक्तों को है, इस तीर्थ के पास महानदी की एक शाखा जमनिया नाला है जिसे वैष्णव भक्त यमुना अथवा कालिंदी का रूप मानते हैं. यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा के अवसर पर मेला लगता है.
खरौद
शिवरीनारायण से लगभग 3 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में जाँजगीर-चांपा जिले में स्थित इस नगर का प्राचीन नाम इन्द्रपुर था. यहाँ सोमवंशी राजाओं द्वारा निर्मित भगवान लक्ष्मणेश्वर शिवमंदिर है. यहां शबरी मंदिर भी स्थित है. इसे छत्तीसगढ़ का काशी कहा जाता है. लक्ष्मण ने इस स्थान पर शिवजी की तपस्या की संभवतः इसलिए इसका नाम लक्षलिंग पड़ा. यहाँ शिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है. शिवरीनारायण वैष्णव मत का केन्द्र था इसीलिए इसे विष्णुकांक्षी एवं खरौद शैव मत का केन्द्र था इसीलिए इसे शिवाकांक्षी कहा जाता है.
रतनपुर
बिलासपुर से 26 किलोमीटर दूर स्थित धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का स्थल है. कल्चुरी राजा रत्नसेन की राजधानी रतनपुर को छत्तीसगढ़ की प्रथम राजधानी होने का गौरव प्राप्त है. रतनपुर को तालाबों का शहर भी कहा जाता है. यहाँ प्रमुख दर्शनीय स्थलों में राजा रतनसेन द्वारा निर्मित महामाया मंदिर, प्राचीन किले के अवशेष, रामटेकरी का पंचायतन मंदिर, लखनी देवी मंदिर, शिवमंदिर, संकटमोचन हनुमान मंदिर एवं मूसा खाँ की दरगाह आदि प्रमुख है. रतनपुर की महामाया मंदिर को जागृत शक्तिपीठ माना जाता है..
डोंगरगढ़
प्राचीन नाम कामावतीपुरी, राजनांदगाँव जिले में मुम्बई-हावड़ा मार्ग पर स्थित है. कामावतीपुरी के राजा वीरसेन ने डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर महेश्वरी देवी (पार्वती) का मंदिर बनवाया. यह मंदिर बम्लेश्वरी देवी (बमलाई दाई) मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. डोंगरगढ़ में प्रतिवर्ष शरद नवरात्रि तथा चैत्र नवरात्रि में मेला लगता है. यहाँ पर मंदिर तक जाने के लिए रोप-वे भी बनाया गया है. यहाँ प्रज्ञागिरी पहाड़ी पर स्थित 30 फीट ऊंची बौद्ध प्रतिमा भी दर्शनीय है. यहां प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन आयोजित किया जाता है.
दंतेवाड़ा
दंतेवाड़ा शंखिनी-डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित है यहाँ ताराला ग्राम में माँ दंतेश्वरी का भव्य मंदिर है. जिसका निर्माण काकतीय नरेश अन्नमदेव ने कराया था मंदिर परिसर में गणेश, विष्णु, नन्दी की कलात्मक मूर्तियाँ है. बस्तर का यह एकमात्र तीर्थ स्थल है.
आरंग
रायपुर से सम्बलपुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है. ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के अनेक मंदिर होने के कारण इसे मंदिरों का नगर कहा जाता है. आरंग का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. यहाँ का भाण्ड देवल मंदिर 12 वीं शताब्दी में निर्मित है जिसमें जैन तीर्थकरों नेमीनाथ और अजीतनाथ तथा श्रेयांश की मूर्तियाँ है. आरंग में बाघदेवल, हरदेवलाल, पंचमुखी, हनुमान आदि के मंदिर दर्शनीय है.
चंदखुरी
राम की माता कौशल्या के पिता भानुमन्त दक्षिण कोसल के राजा थे, उनके राज्य में चंदखुरी क्षेत्र शामिल था यहाँ कौशल्या माता का मंदिर है. रामायण युग के वैद्य सुषेण यहीं के निवासी थे.
कुनकुरी चर्च
जशपुर जि. रायगढ़-जशपुर राजमार्ग में जशपुर से 45 किलोमीटर पहले स्थित है. कैथोलिक ईसाइयों का पवित्र स्थल, एशिया का दूसरा सबसे बड़ा कैथोलिक चर्च है.
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खल्लारी
खल्लारी या भीमखोज, महासमुंद जिले में स्थित पौराणिक महत्व के इस गाँव में पहाड़ी पर माँ खल्लारी का मंदिर स्थित है. ‘हैहयवंशी’ राजा हरि ब्रह्मदेव की राजधानी थी. यह मंदिर देवपाल मोची द्वारा बनवाया गया था. महाभारत काल के प्रसंगों से जुड़ी कथाएँ इस गाँव को महत्व प्रदान करती है. इस पहाड़ी के नीचे लाक्षागृह के अवशेष है जहाँ दुर्योधन ने पाण्डवों को जलाकर मारने का षड़यंत्र रचा था.
मदकू द्वीप
बैतलपुर, मुंगेली जिला, शिवनाथ के तट पर हिन्दुओं एवं ईसाइयों का पवित्र स्थान.
पाली
- कोरबा जिले में यहाँ 9वीं सदी में बाणवंशी राजा विक्रमादित्य ‘जयमेऊ’ द्वारा निर्मित शिवमंदिर है. यहाँ भी मंदिरों में मिथुन मुद्राओं का कलात्मक चित्रण है.
- चैतुरगढ़ या लाफा, कोरबा जिले पाली के पास पहाड़ी शिखर पर स्थित, यहाँ महामाया मंदिर, किले का भग्नावशेष, तालाब और गुफा शिव दर्शनीय है. गुफा शिवलिंग के संदर्भ में यह जनश्रुति प्रचलित है कि भस्मासुर का वध इसी गुफा में हुआ था.
चैतुरगढ़
चैतुरगढ़ किला: इस किले का निर्माण कल्चुरि शासक बहारसाय ने कराया था. प्रख्यात पुरातत्वविद ‘बेगलर’ ने दुर्गम भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ के किले को देश के अभेद्य किलों में शामिल किया. दुर्गम पहाड़ियों तथा सघन वनों से आच्छादित, वर्ष भर हरियाली और शीतल जलवायु के कारण इसे छत्तीसगढ़ का कश्मीर कहते हैं।
नगपुरा
दुर्ग जिले में स्थित नगपुरा या पारसनगर में जैन तीर्थकरों की भव्य मूर्तियाँ विराजमान है. यह का एकमात्र जैन तीर्थ स्थल है. इसे उवसग्गहरं पार्श्वनाथ तीर्थ के नाम से जाना जाता है. यहाँ पवनाथ की प्रतिमा स्थापित है. जगतपाल सिंह ने इस प्रतिमा को स्थापित किया था.
बकेला
कबीरधाम जिले में जैनधर्मावलंबियों के तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध, यहाँ की पुरातात्विक खुदाई में भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति मिली थी जिसे वर्तमान में पंडरिया के जैन मंदिर में रखा गया है.
तुरतुरिया
बलौदाबाजार जि., महर्षि वाल्मिकी का आश्रम कहा जाता है कि राम द्वारा सीता को त्यागने के बाद सीता ने इसी आश्रम में आश्रय लिया था तथा लव-कुश का जन्म यहीं हुआ था.
लूतरा शरीफ
बिलासपुर जिले में मस्तूरी तहसील में सीपत के समीप लूतरा शरीफ में मुस्लिम संत हजरत बाबा सैय्यद इन्सान अली शाह की दरगाह है.
तातापानी
बलरामपुर जिला, अंबिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर तातापानी में गर्म जल स्त्रोत है, इन कुंडों के जल से हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गंध आती है. जलकुंडों में स्नान करने, पानी पीने से अनेक चर्मरोग ठीक हो जाते हैं. यहाँ एक विद्युत उत्पादन इकाई लगाना प्रस्तावित अंबिकापुर के निकट दरिमा हवाई अड्डा के पास बड़े-बड़े पत्थरों का समूह है. इन पत्थरों को किसी ठोस चीज से ठोंकने पर
ठिनठिनी पखना:
अबूझमाड़
विभिन्न धातुओं की आवाज आती है. नारायणपुर जि., गोंड़ों की उपजाति अबूझमाड़िया का निवास स्थान। यह छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान भी माना जाता है. यह विशेष पिछड़ी जनजाति अबूझमाड़िया का निवास स्थल है. कुछ समय पहले तक उनकी संस्कृति की रक्षा के लिए यह प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित था जहाँ प्रवेश के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती थी. वेरियर एल्विन ने विस्तृत शोध कार्य किया है.
रामगढ़ पहाड़ी:
सरगुजा जिले में स्थित रामगढ़ पहाड़ी की जोगीमारा गुफा अपने चित्रों के लिए विख्यात है. इसे वरूण का मंदिर कहा जाता है. यहाँ सुतनुका देवदासी रहती थी, जो वरूण देव को समर्पित थी. सुतनुका को देवदत्त से प्रेम हो गया था. देवदत्त ने अपने भावनाओं को दीवार पर उत्कीर्ण किया है जो छत्तीसढ़ में मौर्य कालीन पाली भाषा का एकमात्र गुफालेख है. यहाँ चित्रों में जुलूस, नृत्य, दर्शक, दरबार के चित्र उल्लेखनीय है. यहाँ ज्यामितीय अलंकरण भी हैं. डॉ. ब्लाख ने इसे ईसा पूर्व तीसरी सदी का माना है. इसकी अंकन शैली भरहुत कला के समान है.
यह गुफा महाकवि कालिदास से भी संबंधित है. कहा जाता है कि उनके मेघदूत का यक्ष इसी गुफा में निर्वासित था, जहाँ से उसने अपनी प्रेमिका को संदेश भेजा था.
रामगढ़ पहाड़ी की सीता बेंगरा गुफा में विश्व की प्राचीनतम नाट्य शाला स्थित है. यह नाट्यशाला भरत मुनि से पहले की मानी जाती है. डॉ. ब्लाख के अनुसार यहाँ काव्यपाठ, प्रणय गान और अभिनय होता था. इसकी निर्माण अवधि ईसा पूर्व की तीसरी शताब्दी मानी जाती है. यहाँ एक वृत्ताकार रंगमंच है और पत्थरों पर निर्मित दर्शक दीर्घा
कोटगढ़
जाँजगीर जि., अकलतरा-बलौदा सड़क पर यह गाँव स्थित है. यहाँ एक पुराना किला है. किले के भीतर अनेक मंदिरों के खंडहर थे और अनेक शिलालेख है.
अर्जुनगढ़
बलरामपुर जिले के शंकरगढ़ विकासखंड के जकापाट के बीहड़ जंगल में स्थित प्राचीन किले का भग्नावशेष।
नवागढ़
बेमेतरा जिला. पूर्व में गोंड राजाओं की राजधानी थी. उनके द्वारा निर्मित किला एवं चारों खाइयों के चिन्ह अभी भी मौजूद हैं. यहाँ खेड़ापति का प्राचीन मंदिर है, जिसमें संवत् 704 वि. उत्कीर्ण है. प्राचीन नाम जाज्वल्यनगरी, यहाँ जाज्वल्यदेव प्रथम द्वारा निर्मित अपूर्ण और मूर्ति विहीन मंदिर दर्शनीय है. इसकी दीवारों पर दशावतार, सूर्यदेव, ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्तियाँ और कोनों में किन्नरियों, स्त्रियों की मूर्तियाँ अंकित है. इनमें से विष्णुजी को मूर्ति नवग्रहों के मध्य में प्रतिष्ठित है.
तुम्माण
कोरबा जिला, कल्चुरी (हैहयवंशी) राजाओं ने सर्वप्रथम अपनी राजधानी यहीं स्थापित की थी. पहाड़ियों के बीच स्थित गाँव तुम्माणखोल के नाम से प्रसिद्ध है.
पचराही
कबीरधाम जिले के पचराही को फणिनागवंशियों का गढ़ माना जाता है. पचराही में खुदाई से अनेक देवी-देवताओं की मूर्ति, सोने एवं चाँदी के सिक्के मिले हैं, जिसे सुरक्षित रखने के लिए पचराही में पुरातात्विक संग्रहालय बनाया गया है।
खुड़िया
जाँजगीर जि., सक्ती रियासत के खुड़िया गाँव में खुड़िया रानी का एक मंदिर है, पहाड़ी कोरवा मानते हैं कि इसी से उनकी उत्पत्ति हुई. यह मंदिर एक दुर्गम चट्टान पर बना हुआ है.
मुड़पार
कांकेर से उत्तर में 12 मील की दूरी पर स्थित उक्त गाँव महानदी के तट पर बसा हुआ है. यहाँ प्राचीन दुर्लभ प्रतिमाएँ यत्र-तत्र बिखरी हुई हैं.
आकाश नगर दंतेवाड़ा जिले के बचेली में बैलाडीला की पहाड़ियों पर बसा नगर
महेशपुर
सरगुजा जिले में स्थित शैव संस्कृति का केन्द्र, भग्नावशेषों से कल्चुरी कालीन कला एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं. तातापानी के पास पिपरौल पर्वत के निचले भाग में कई प्राचीन मूर्तियों का समूह, विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, कुछ मंदिर भग्नावशेष के रूप में स्थित हैं.
पिपरौल
गुरूर यहाँ का शिव मंदिर दुर्ग संभाग का प्राचीनतम मंदिर निर्माणकाल सातवीं शताब्दी, यह मंदिर द्रविड़ शैली में बना है जिसका पिरामिडनुमा शिखर है. यहाँ ऐहोल के चालुक्यों का उल्लेख मिलता है.
देवरबीजा
बेमेतरा जिले में देवरबीजा का शिवमंदिर बेमेतरा से 25 कि.मी. दूर स्थित, पंचरथ प्रकार का मंदिर है। इसका उत्तुंग शिखर उत्तर भारत की नागर शैली का है.
मैनपाट
छत्तीसगढ़ का शिमला के नाम से विख्यात मैनपाट सरगुजा जिले में स्थित है. यहाँ दो बड़े बौद्ध मठ दर्शनीय है. यहाँ शरणार्थी तिब्बती निवास करते हैं. यहाँ सरभंजा जल प्रपात, मतिरिंगा रिहंद नदी का उद्गम, टाईगर पॉइंट जलप्रपात है. यह स्थान आलू की खेती, ऊन, गलीचा, चमड़े के सामान एवं पामेरियन कुत्तों के लिए प्रसिद्ध है.